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Tuesday 23 February 2016

तूँ मेरी नज़र में नहीं

"मेरी नज़र में रोशन है बेपनाह मुहब्बत ,
ये बात और है कि तूँ मेरी नज़र में नहीं" .......
तुम साथ भी होते तो क्या हो जाता ,
मैंने तुम्हें एक पल भी बिछुड़ने न दिया ..........
न देख पाये ताजमहल मुहब्बत करने वाले ,
ज़िंदा रहते कहाँ ताजमहल बनता है ........


अनिल

मैं धर्म निरपेक्ष नहीं ...

मेरा राष्ट्र ,
राष्ट्र का संविधान ,
धर्मनिरपेक्ष है ,
रहेगा ,
मैं, धर्म निरपेक्ष नहीं ,
मेरा जन्म से धर्म है ,
जो इंसानियत के सिवा
कुछ नहीं सिखाता ,
जो किसी को
अधर्मी भी नहीं कहता,
मुझे गर्व है ,
अपने धर्म पर ,
जो सम्पूर्ण विश्व को
अपना परिवार कहता है,
तुम्हारी धर्मनिरपेक्ष की परिभाषा ,
मेरे धर्म से बढ़ कर नहीं .......
मैं धर्म निरपेक्ष नहीं ....

अनिल

भाग्य के दर्पण

मैं स्तब्ध अनंत आसमां सा
देखता रहा अविचल
आशाओं के बादलों को
भीगे सपनों को लिये,
और दुःखों की आंधियों काे
बिछड़े अपनों को लिये,
समय चक्र की वक्रता में
बदरंग आभासी बिम्बों को,
महज भाग्य के दर्पणों से....

था बड़ा असहाय देख
तड़ित के भीषण नृत्य को
और जलजलों के कृत्य को,
वर्जना की वेदना को
मिटा न पाया कर्मठों
और अश्रुओं के तर्पणों से....
अनिल कुमार सिंह

घर छोडते नहीं

आँख में आँसू लिए पुकारता है आसमां ,
न जाओ मेरे सितारों यूं ही टूट कर,
मेरे दामन ने बड़े प्यार से पाला है तुम्हें ,
घर छोडते नहीं कभी भी रूठ कर ,
खींचता है तुम्हें दूर का आकर्षण,
राह में मिलेगा वायु का भी घर्षण ,
कुछ पल में बिखर कर जल जाओगे,
राख हो कर खाक़ में मिल जाओगे ,
जो भी गया अपने घर को छोड़ कर ,
छला गया वह जीवन के हर मोड़ पर .....
न जाओ मेरे सितारों यूं ही टूट कर
घर छोडते नहीं कभी भी रूठ कर.......
अनिल कुमार सिंह