Search This Blog

Monday, 20 October 2014

इस दिवाली


स्वार्थ ,लोभ और प्रलोभ के अँधेरे
वासनाओं के तिमिर मुझको हैं घेरे
अंधकारों में ह्रदय भी कांपता है
मौत की आहट को भी वह भांपता है
विकृत तमस को हटाने की कला दो
बुझ रहे इस दीप को फिर से जला दो
इसकी ज्योति से हों रोशन और दीपक
बाती में इसके ऐसी स्निग्धता दो
प्रार्थना है इस दिवाली तुमसे ईश्वर
विश्व के आलोक में बस दिव्यता हो .
:-अनिल कुमार सिंह

No comments:

Post a Comment