सरकारी सेवा भी किसी मुहब्बत से कम नहीं,न जाने कहाँ - कहाँ ,किन- किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ जाये ,हर वक़्त तैयार की मुद्रा में रहना पड़ता है, साल २००९ में मेरा स्थानांतरण जम्मू कश्मीर के पुंछ नामक कस्बे में हुआ, पहुँचना जरूर दूभर था ,लेकिन पहुँचने के बाद कोई तकलीफ नहीं हुयी। तीन कमरों वाला सरकारी आवास मिल गया ,जो ऑफिस से लगभग दो किलो मीटर दूरी पर था , ऊपर टीन और एस्बेस्टस का बना छत था,जिसमे कई आज़ाद परिंदों के घर थे ,उनके उड़ने की आवाज़ टीन से टकरा कर सन्नाटे में गूंजती थी। सहयोगियों की कोई कमी नहीं थी, ड्यूटी सुबह १० बजे से रात १० बजे तक करनी पड़ती थी। रात में सरकारी वाहन द्वारा आवास पर पंहुचने के बाद एक गिलास दूध पी कर बिस्तर पकड़ लेते थे , कॉलोनी के पीछे पुलस्त नदी की उछल - उछल कर चलने की आवाज का मधुर गान, थपकी दे कर सुला देता था ,और सुबह- सुबह अपनी आवाज में परिंदो के सुर घोल कर मुझे उठा भी देता था , हरे भरे पहाड़ों के शीर्ष पर चमचमाती बर्फ के मकुट भोर होने का प्रमाण देते थे,. अखबार पढ़ने के बाद चाय से लेकर खाना बंनाने तक के कार्य और फिर १० बजे से वही ऑफिस - ऑफिस।
कुछ दिन सब कुछ सामान्य चलता रहा ,लगभग एक महीने बाद से कुछ हैरान करने वाली घटनाएँ होने लगी ,रात में ऑफिस से आने के बाद दूध के भगौने का ढक्कन उठाते, तो उसमे अक्सर दूध कम या गायब रहता , चलो शायद बिल्ली पी गयी हो ,बिल्ली के कौशल पर आश्चर्य होता कि दूध सफाई से पी गयी और ढक्कन भी नहीं गिरा ,लगता है पहाड़ी बिल्ली ज्यादा ही कुशल होती हों ,यही सोच कर किचन की खिड़की और जाली वाले दरवाजे को अच्छे से बंद कर देता और सो जाता।
१३ अगस्त २००९ को भी ऐसे ही आया और थक कर सो गया, मैं मुख्य द्वार से सबसे अंतिम कमरे में ही सोया करता था , रात में ठण्ड थी सो एक कम्बल को सहारा बना लिया, रात को लगभग एक बजे ,नदी का शोर स्पष्ट सुनायी दे रहा था ,स्ट्रीट लाइट की रौशनी कांच की खिड़कियों से कमरे को नाइट लैंप जितना उजाला दे रही थी , किसी ने अपने हाथ से मेरे कंधे को हिलाया , गहरी नींद में होने के कारण सब कुछ महसूस करते हुए भी मैं करवट बदल कर लेट गया ,फिर मेरे कंधे को पकड़ कर जबरदस्ती उठाने वाले अंदाज में झंकझोर दिया , मैं चौक कर कम्बल फेंकते हुए उठा तो देखता हूँ ,कि सफ़ेद पठानी सूट पहने एक लम्बा शख्स मेरे सामने खड़ा है , कौन है? मैं घबराकर जोर से चिल्लाया ,,, वो शख्स पीछे मुड़ा और लॉबी के रास्ते ड्राइंग रूम से होता हुआ चला गया … अरे कौन था वह? ओह! शायद आज मुख्य दरवाजे की चिटकनी बंद करना भूल गया … या तो कोई आतंकी छिपने के लिए खुले घर में चला आया ,या सेक्युरटी गार्ड जो पठानी सूट पहनता था ,मुझसे यह कहने आया था , कि दरवाजा बंद कर लो ,कुछ पलों में ही सभी संभावनाएं कौंध गयी ! आतंकी अक्सर रात में नदी के सहारे ही रास्ता तय करते थे ,ऐसा वहां कई लोगों से सुना था ,इसलिए ज्यादा डर लग रहा था। कुछ देर तक सन्न मारे खड़ा रहा, फिर सोचा चलो दरवाजा बंद कर ही आते है , लाइट जला कर ड्राइंग रूम में पंहुच कर देखा कि सभी खिड़की दरवाजे तो अंदर से पुख्ता तरीके से बंद हैं ,खुद को स्पर्श कर एहसास किया, कि कहीं मैं नींद में तो नहीं हूँ, नहीं नहीं मैं नींद में नहीं हूँ , तो फिर ये कौन ,कहाँ से? .... सवालों की कौंध से बदन काँप रहा था , उस पर टीन के छतों से उड़ते परिंदों की आवाजें और डरा रही थी , चार क्वार्टर का एक ब्लॉक ,उसमें भी मैं अकेला ,मैंने गेट पर लगे पुलिस जवान को फ़ोन करके बुलाया ,आप बीती बताई .... वो कहने लगा, छः साल पहले भी इस घर में जो रहता था, उसके साथ भी ऐसे ही हुआ था साहब ,तब से ये क्वार्टर खाली ही था , कोई बात नहीं साहब ,सब बत्तियां जला कर सो जाइये!____ वह तो ऐसा कह कर चला गया , मैं पसीने से तर- बतर था ,शरीर का तापमान बढ़ गया था ,बहुत तेज़ बुखार था , ठण्ड में भी पसीने से हाल बुरा था, अब इतनी रात में कैसे किसकी नींद ख़राब करूं ,सोचते सोचते सवेरा हो गया , सहकर्मियों को बात बताई तो ,वे इससे भी ज्यादा भयावह घटनाएँ बताने लगे ,जो इसी क्वार्टर में घटी थीं , उसके बाद मैं उस क्वार्टर में कभी अकेला नहीं रहा और कभी बत्तियां बंद नहीं की. एक साल गुजरने के बाद वापस अयोध्या चला आया.……… कौन था वह?आज भी एक बड़ा सवाल है ,वैसे मैं भूत- वूत को नहीं मानता।
अनिल कुमार सिंह
सी ३ आकाशवाणी कॉलोनी
बेगमगंज गढ़ैया ,फैज़ाबाद
9336610789
कुछ दिन सब कुछ सामान्य चलता रहा ,लगभग एक महीने बाद से कुछ हैरान करने वाली घटनाएँ होने लगी ,रात में ऑफिस से आने के बाद दूध के भगौने का ढक्कन उठाते, तो उसमे अक्सर दूध कम या गायब रहता , चलो शायद बिल्ली पी गयी हो ,बिल्ली के कौशल पर आश्चर्य होता कि दूध सफाई से पी गयी और ढक्कन भी नहीं गिरा ,लगता है पहाड़ी बिल्ली ज्यादा ही कुशल होती हों ,यही सोच कर किचन की खिड़की और जाली वाले दरवाजे को अच्छे से बंद कर देता और सो जाता।
१३ अगस्त २००९ को भी ऐसे ही आया और थक कर सो गया, मैं मुख्य द्वार से सबसे अंतिम कमरे में ही सोया करता था , रात में ठण्ड थी सो एक कम्बल को सहारा बना लिया, रात को लगभग एक बजे ,नदी का शोर स्पष्ट सुनायी दे रहा था ,स्ट्रीट लाइट की रौशनी कांच की खिड़कियों से कमरे को नाइट लैंप जितना उजाला दे रही थी , किसी ने अपने हाथ से मेरे कंधे को हिलाया , गहरी नींद में होने के कारण सब कुछ महसूस करते हुए भी मैं करवट बदल कर लेट गया ,फिर मेरे कंधे को पकड़ कर जबरदस्ती उठाने वाले अंदाज में झंकझोर दिया , मैं चौक कर कम्बल फेंकते हुए उठा तो देखता हूँ ,कि सफ़ेद पठानी सूट पहने एक लम्बा शख्स मेरे सामने खड़ा है , कौन है? मैं घबराकर जोर से चिल्लाया ,,, वो शख्स पीछे मुड़ा और लॉबी के रास्ते ड्राइंग रूम से होता हुआ चला गया … अरे कौन था वह? ओह! शायद आज मुख्य दरवाजे की चिटकनी बंद करना भूल गया … या तो कोई आतंकी छिपने के लिए खुले घर में चला आया ,या सेक्युरटी गार्ड जो पठानी सूट पहनता था ,मुझसे यह कहने आया था , कि दरवाजा बंद कर लो ,कुछ पलों में ही सभी संभावनाएं कौंध गयी ! आतंकी अक्सर रात में नदी के सहारे ही रास्ता तय करते थे ,ऐसा वहां कई लोगों से सुना था ,इसलिए ज्यादा डर लग रहा था। कुछ देर तक सन्न मारे खड़ा रहा, फिर सोचा चलो दरवाजा बंद कर ही आते है , लाइट जला कर ड्राइंग रूम में पंहुच कर देखा कि सभी खिड़की दरवाजे तो अंदर से पुख्ता तरीके से बंद हैं ,खुद को स्पर्श कर एहसास किया, कि कहीं मैं नींद में तो नहीं हूँ, नहीं नहीं मैं नींद में नहीं हूँ , तो फिर ये कौन ,कहाँ से? .... सवालों की कौंध से बदन काँप रहा था , उस पर टीन के छतों से उड़ते परिंदों की आवाजें और डरा रही थी , चार क्वार्टर का एक ब्लॉक ,उसमें भी मैं अकेला ,मैंने गेट पर लगे पुलिस जवान को फ़ोन करके बुलाया ,आप बीती बताई .... वो कहने लगा, छः साल पहले भी इस घर में जो रहता था, उसके साथ भी ऐसे ही हुआ था साहब ,तब से ये क्वार्टर खाली ही था , कोई बात नहीं साहब ,सब बत्तियां जला कर सो जाइये!____ वह तो ऐसा कह कर चला गया , मैं पसीने से तर- बतर था ,शरीर का तापमान बढ़ गया था ,बहुत तेज़ बुखार था , ठण्ड में भी पसीने से हाल बुरा था, अब इतनी रात में कैसे किसकी नींद ख़राब करूं ,सोचते सोचते सवेरा हो गया , सहकर्मियों को बात बताई तो ,वे इससे भी ज्यादा भयावह घटनाएँ बताने लगे ,जो इसी क्वार्टर में घटी थीं , उसके बाद मैं उस क्वार्टर में कभी अकेला नहीं रहा और कभी बत्तियां बंद नहीं की. एक साल गुजरने के बाद वापस अयोध्या चला आया.……… कौन था वह?आज भी एक बड़ा सवाल है ,वैसे मैं भूत- वूत को नहीं मानता।
अनिल कुमार सिंह
सी ३ आकाशवाणी कॉलोनी
बेगमगंज गढ़ैया ,फैज़ाबाद
9336610789
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