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Saturday, 26 September 2015

मिलने को खारे समुंदर को
भटकती विव्हल नदियाँ
मीठे पानी को लिए ,
इस छोर से उस छोर तक ,
कवच ध्वंस को सिर पटकती
सागर मध्य तृषित सीपी , गर्भ में मोती लिए
इस खोह से उस खोह तक ,

मौत की मंज़िल सुनिश्चित ,
भटकती है नर पिपासा ,
जीवन अमृत को लिए ,
इस मोड़ से उस मोड़ तक ,
तृप्तता को लिए ,
असंतृप्त है ,
अभिशप्त है ,
मृग ये सारे ,
भटकते हैं ,
भागते हैं ,
कस्तूरी अपनी लिए ,
ज़िंदगी के छोर तक ........
अनिल कुमार सिंह

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