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Thursday 11 August 2016

आखिर कब तक

बंद करो ये खेल मौत का,
पहले तो बस एक मरा था,
क्या उसको जिंदा कर पाओगे?
जाने कितने और मर गये,
खूनी जलसा, आखिर कब तक?

पूछ रहा है तुमसे हिमालय,
पूछ रही झेलम की धारा,
पूछ रही है तुमसे बेकारी,
पूछ रहा है टूटा शिकारा,
पूछ रही बच्चों की शिक्षा,
पूछ रहा वो भूखा बेचारा,
जो रोज कमाता था रोजी,
करता था घर का गुजारा,

कब तक यूं ही बहकाओगे?
अपने मन को बहलाओगे,
तुम्हें यकीं है हमें पता है,
सफल कभी न हो पाओगे.......
फिर क्यों इतना सब , आखिर कब तक?आखिर कब तक ???

अनिल

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