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Friday, 28 August 2015

गर दे तो जख्म दे कि मेरे हौसले बढ़ें

ऐ जमाने तूँ मुझे हौसले न दे ,
गर दे तो जख्म दे कि मेरे हौसले बढ़ें,
दूर ही सही मंज़िलों के वो निशां ,
मुझसे नज़र मिलें तो खुद मजिलें चलें ।
अनिल

Wednesday, 26 August 2015

प्यार एक लम्हा नहीं बिताने को

अपने आगोश में चाँदनी को लेकर ,
थरथरा कर क्यों पिघलता है बादल ,
आवारगी इस नेह के काबिल नहीं है ,
एक क्षण के प्यार में होता है घायल.....
प्यार एक लम्हा नहीं बिताने को ,
एक उम्र बीत जाती है निभाने को........

अनिल

Monday, 24 August 2015

देखता हूँ ज़िंदगी को

हथेलियों के कागजों पर
नित रोज़ नव रेखा बनाती ,
देखता हूँ ज़िंदगी को ,
ठोकरों में गुनगुनाती।
कार के शीशे पे ठक ठक
जब कभी आवाज आती
हाथ में पोंछा लिए
फटेहाल फिर भी मुस्कराती ,
देखता हूँ ज़िंदगी को ,
ठोकरों में गुनगुनाती।
ट्रेन की खिड़कियों में ,
दिख जाती है वो अक्सर ,
रंगों से खुद को सजाकर ,
कुछ खिलौने टनटनाती,
देखता हूँ ज़िंदगी को ,
ठोकरों में गुनगुनाती।
हाथ ले लोहे का सरिया ,
कांधे पर प्लास्टिक की बोरिया ,
पौ फटते ही निकल पड़ती है ,
शहर को अपने संवारती ,
देखता हूँ ज़िंदगी को ,
ठोकरों में गुनगुनाती।
अनिल कुमार सिंह

Sunday, 23 August 2015

"ज़िंदगी के दर्द "

"ज़िंदगी के दर्द "
ज़िंदगी के सुनहरे रंग बहुत आकर्षित करते है , सब अपने -अपने दामन में अपने- अपने सपने लिए चलते हैं और सपने भी नित रोज़ नया रंग ले लेते है,ज़िंदगी की ऊंचाइयों में जितना हर्ष है ,उतना ही विषाद उसकी गहराइयों में है ,अनंत सीमाओं में अनंत हर्ष और अनंत विषाद । पीड़ा देखी नहीं जाती, कई प्रश्नो के साथ चिंता की लकीरों को गहरी करती जाती हैं ।
बात कुछ समय पहले की है ,मैं और मेरे दोस्त आनंद ,मेरी पत्नी अंजू को परीक्षा दिलवाने लखनऊ गए थे ,पत्नी को परीक्षा केंद्र पर पंहुचने के बाद हमें समय बिताना था और कुछ भूख भी लग रही थी ,आनंद ने कहा चलिये आपको आज शर्मा की कचोड़ी खिलाता हूँ ,खाई नहीं होगी आपने कभी ऐसी कचोड़ी ... मैंने हामी भर ली और चल दिये तेली बाग से आगे ....
साधारण से दुकान पर सुबह सुबह बहुत भीड़ उसकी प्रसिद्धि को दर्शा रही थी ,दुर्भाग्य से कचोड़ी खत्म हो चुकी थी उसने कुछ देर ठहरने को कहा ,आनंद तब तक एक दोने में जलेबी ले आए ,बाकी भी लोग जलेबी पर टूट पड़े थे ,बाहर दो बड़े बड़े डस्ट्बिन रखे थे ,मेरी नज़र डस्ट्बिन के पास खड़े एक लगभग 13-14 वर्षीय बालक पर पड़ी जो डस्ट्बिन से कचरा निकाल कर एक बड़े प्लास्टिक के बोरे में डाल रहा था और कभी कभी दोनों को चाट भी रहा था , यदि किसी दोने में कुछ खाने का जूठा रहता तो तो वह लँगड़े पाँव से दौड़ते हुये एक नन्हें बालक को ले जाकर देता था जो थोड़ी दूर एक मुंडेर पर बहुत सुस्त भाव से बैठा था ,उसकी उम्र लगभग आठ साल रही होगी,उसके पास भी एक बोरा था जो खाली था ।
बड़े लड़के के पाँव में शायद चोट लगी थी ,इसीलिए वह चलते और दौड़ते समय लंगड़ा रहा था , जब वह फिर से बिन के पास आया तो मैंने उसे बुलाया और 10-10 के दो नोट उसे देकर कहा "तुम दोनों दुकान से जलेबी लेकर खा लो "
वह लड़का दौड़ा दौड़ा छोटे वाले लड़के के पास गया और दूसरे लड़के को एक नोट दे दिया ,मैंने सोचा था कि वे दोनों दुकान पर आएंगे और जलेबी खाएँगे ,किन्तु ऐसा हुआ नहीं ....
दोनों के चेहरे पल भर के लिए खिल गए ,और दोनों अपने अपने बोरों को कंधे पर रख दुकान से विपरीत दिशा में चलते हुये ओझल हो गए ...
आनंद से मैंने आश्चर्य से पूंछा ,ये दोनों जलेबी खाये बिना ही चले गए?
आनंद ने कहा .... शायद उन्हें दिन भर कचरा बीनने से इतने ही रुपए मिलते हों ... वे इसकी कीमत जानते हैं .... घर पर जाकर देंगे तो शायद शाम के चूल्हे में जान आएगी ...
मैं बहुत पछता रहा था ... ऐसा मालूम होता तो कुछ और मदद कर पाता उन दोनों की ... ज़िंदगी की गहराइयों में बहुत दर्द है ...
परीक्षा का समय समाप्त होने पर, हम अपनी गाड़ी से वापस फ़ैज़ाबाद के रास्ते पर एक आइस क्रीम पार्लर पर रुके , मेरा मन बहुत दुखी था .... मैने आनंद से कहा आइस क्रीम मेरे लिए मेट लाना ......
अनिल कुमार सिंह

Saturday, 15 August 2015

आज़ादी का जश्न मुबारक

आज़ादी का जश्न मुबारक
ये मत भूलो रखो ध्यान
आज के दिन ही भारत माँ की
कोख से निकला पाकिस्तान ,
जलते घर और अगनित लाशें
मानवता हुयी लहूलुहान
माँ की कोख से
बड़े दर्द से
आज था निकला पाकिस्तान ...
एक तरफ लाल किले पर
शोर पटाखे ,लाउडस्पीकर
एक तरफ बेघर बाशिंदे
खोजते अपनों को रो रो कर ...
तन के वसन साथ थे केवल
बिछुड़ गए खेत खलिहान
माँ की कोख से
बड़े दर्द से
आज था निकला पाकिस्तान ...
आज़ादी का जश्न मुबारक
अनिल

Thursday, 13 August 2015

रात भर रोया है सावन

रात भर रोया है सावन
पल भर नहीं सोया है सावन
बज रहे बूंदों के घुँघरू
अब नहीं बजती है पायल ....
पूंछती गिर गिर के बूंदें
क्यों है सूना सूना आँगन ...
रात भर रोया है सावन

Wednesday, 12 August 2015

गिराओ तुम हमें हम उठेंगे और भी दम से

स्वप्न ओझल हो गए
स्वप्नों के बाज़ार से ,
कौन बुझा बैठा
चिरागों को
दरों दीवार से ,
जूझते हैं हौसले
इन अँधेरों से मगर ,
हारता हर एक मांझी
अपनी ही पतवार से ,
तमस बाहर का
अन्तः ज्वाला को
हरा सकता नहीं,
जो खुद बुझा हो
दूसरा दीपक
जला सकता नहीं ,
गिराओ तुम हमें
हम उठेंगे
और भी दम से,
साधना गर लक्ष्य तो
ये सीख लो हमसे ,
जला कर इन चिरागों को
सजाएँ फिर से सपनों को
लगा कर बोलियाँ उनकी
तलाशें बिछुड़े अपनों को ।

अनिल

Thursday, 6 August 2015

अगला धरना

बेबी डॉल वो सोने वाली करती चीख पुकार ,
करती चीख पुकार, वो पहुंची अन्ना के दरबार,
धरनों के सरदार ,अबकी, सुनलों मेरी पुकार ,
कर दी सारी बंद साइटें ,ये कैसी सरकार ,
कुछ करों यत्न ,दूकान बंद ,बंद है कारोबार ,
चंदा चुटकी भारी भरकम, ले लों भीड़ हज़ार ,
तरस खाओ मेरे दीवानों पर, हो जाओ तैयार ,
पाँव पड़ूँ तोरे मोरे अन्ना ,विनती बारंबार ,
अन्ना खड़े हुये खटिया से ,सुन लो मेरी बात ,
मैं बूढ़ा अब मेरे चेले , धरनो के सरदार,
जंतर मंतर उनका अड्डा और दिल्ली की सरकार,
कजरी बोले मैं नहीं ,मैं नहीं नंबर वन युवराज .....................

सुना है युवराज और बेबी डॉल का धरना होने वाला है .... संसद के धरने के बाद ..

Saturday, 1 August 2015

तेरी मुहब्बत

सूखे पत्ते भी तेरी खुशबू से थिरक जाते हैं ,
तेरे दीदार को बैठे हैं मिट जाने से पहले ,
तेरे साथ मुहब्बत ने मुड़ कर नहीं देखा ,
ये खुद ही महकते थे तेरे जाने से पहले ।
एक बार चले आओ कि चमन खिल जाए ,
पथराई खामोश नज़रों को नमीं मिल जाए ............