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Saturday 27 December 2014

मन की बात

निर्द्वन्द्व हैं निरपेक्ष हैं ,शब्दों को नहीं तौलता हूँ ,
शेष नहीं कुछ भी अंतर में, राज़ सारे खोलता हूँ,
मैं हृदय  से बोलता हूँ  .
जो मिला अपना लगा,जो न मिला सपना लगा,
आनंद में एकांत था,आपात में भी शांत था,
साथ निराकार था,जो मिला अपार था,
सपना मेरा साकार था.
वेग के परिवेश में,अपने भावावेश में,
जल कर  कुछ न शेष था,न न्यून मात्र द्वेष था ,
न मन में कोई बात थी ,फिर नयी एक रात थी,
वो तो कल की बात थी। 

अनिल  कुमार सिंह

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