आज के मजनू : -
लैला मजनू की, मजनू लैला का दीवाना था ,
इस किस्से का ज़माना बड़ा पुराना था,
सच यह हैं वो आशिकी का खुदा हो गया ,
किन्तु उसके चेलों का अंदाज़ जुदा हो गया,
अब तो एक नहीं कई मज़नू नज़र आते हैं ,
सभी चौराहों,नुक्कड़ों के आस पास मिल जाते हैं ,
नाऊ की दुकानों पर पैदा होते हैं ये मज़नू
चाय की दुकानों तक सिमट कर रह जाते हैं,
जेब से झांकता कंघा ,और गले में रूमाल
कान में ईयर फोन और मंद मंद चाल ,
डोलते फिरते हैं खुद को मज़नू का चेला समझ कर,
जताते हैं सबसे प्यार अपनी लैला समझ कर ,
ये भी नाम लिख कर मिटाते हैं हाथों से ,
असल में होश आता है दरोगा की लातों से,
नेक क़दमों से जो चले वे मंज़िल को पाते हैं
ये बेचारे वहीँ के वहीँ खड़े रह जाते है। ......
लैला मजनू की, मजनू लैला का दीवाना था ,
इस किस्से का ज़माना बड़ा पुराना था,
सच यह हैं वो आशिकी का खुदा हो गया ,
किन्तु उसके चेलों का अंदाज़ जुदा हो गया,
अब तो एक नहीं कई मज़नू नज़र आते हैं ,
सभी चौराहों,नुक्कड़ों के आस पास मिल जाते हैं ,
नाऊ की दुकानों पर पैदा होते हैं ये मज़नू
चाय की दुकानों तक सिमट कर रह जाते हैं,
जेब से झांकता कंघा ,और गले में रूमाल
कान में ईयर फोन और मंद मंद चाल ,
डोलते फिरते हैं खुद को मज़नू का चेला समझ कर,
जताते हैं सबसे प्यार अपनी लैला समझ कर ,
ये भी नाम लिख कर मिटाते हैं हाथों से ,
असल में होश आता है दरोगा की लातों से,
नेक क़दमों से जो चले वे मंज़िल को पाते हैं
ये बेचारे वहीँ के वहीँ खड़े रह जाते है। ......
अनिल कुमार सिंह
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