Search This Blog

Tuesday 3 March 2015

कमबख्त ये रंग

वो सारे रंग ,
सहेज कर रखे  हैं मैंने ,
जिन्हें बड़े ऐतबार से 
तुमने सौंप दिया था मुझे 
तुम्हारी रंगो  से 
लिपटी हुयी
 नाज़ुक हथेलियों से
मेरे हाथों में,
अब ,कहीं हलके न पड़ जाये
 यही सोच कर
मैं होली नहीं खेलता ,
कमबख्त ये रंग
बाज़ार में नहीं मिलते ,
और तुम भी तो मुझसे दूर चली गयी ..

No comments:

Post a Comment