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Thursday, 5 May 2016

ज़िन्दगी तुझसे मुहब्बत है

कितना सताया, फिर दुलराया,
हंसते हुए चुपचाप रुलाया,
तूं भी मुहब्बत की तरह निकली
ऐ ज़िंदगी,
मैं तुझसे हार नहीं सकता,
मैं तुझसे जीत नहीं सकता,
एक तूं ही तो मेरी हमसफ़र है,
ऐ ज़िंदगी,
मुझे तुझसे मुहब्बत है.....
मेरे साथ साथ चलना......

अनिल कुमार सिंह.

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