आवरण चहुँ ओर का,
क्यों बांधता है मुझे,
क्यों घेरता है मुझे,
सीमित दायरों के
बन्धनों में,
और समय के
साथ साथ
मेरे देश के ,
मेरे धर्म के ,
मेरी जाति के ,
मेरे कर्म के ,
बन्धनो में जकड़ता जाता है,
ये बंधन जो पोषक है,
नफरतों का,द्वेष का,
विभाजित परिवेश का ,
जो बांटता है,
खुदा से भगवान् को,
इंसान से इंसान को,
इस जमीं
और आसमान को,
काश मेरा स्वप्न भी
साकार हो ,
सार्वभौमिक समग्र
संसार हो,
पंख फैलें जब कभी
उड़ान को,
न कहीं कोई भी
दीवार हो।
Mashaallah itni khoobiyan
ReplyDelete