वो सारे रंग , सहेज कर रखे हैं मैंने , जिन्हें बड़े ऐतबार से तुमने सौंप दिया था मुझे तुम्हारी रंगो से लिपटी हुयी नाज़ुक हथेलियों से मेरे हाथों में, अब ,कहीं हलके न पड़ जाये यही सोच कर मैं होली नहीं खेलता , कमबख्त ये रंग बाज़ार में नहीं मिलते , और तुम भी तो मुझसे दूर चली गयी ..
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