सूखे पत्तों को छू कर,
फिसलती हैं बूंदे भी
बारिश में भी बेजान
नहीं भीगने वाले,
न बरसाओ यहाँ और
मुहब्बत की बरसातें
आँखों की नदी लेकर
कहीं दूर बरसते हैं.....
फिसलती हैं बूंदे भी
बारिश में भी बेजान
नहीं भीगने वाले,
न बरसाओ यहाँ और
मुहब्बत की बरसातें
आँखों की नदी लेकर
कहीं दूर बरसते हैं.....
अनिल कुमार सिंह
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