खामोश खिड़की उदास स्वर से कहती है ,
यूं ही बेवजह वक़्त जाया न करो,
कि इस खिड़की से, अब चाँद नहीं निकलेगा ,
तुम इस मोड़ पर ,अब कभी आया न करो,
अब यहाँ रात और दिन हैं अमावस के पहर ,
कि चाँद चमकता है ,अब किसी और शहर ,
किसी और के घर........
हाँ , एक वादा भी ...
कसम है , उसका पीछा न करना....
कि चाँद ,अपनी परछाई से बहुत डरता है ......
अनिल कुमार सिंह
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