सुबह से शाम तक
उसको सिर झुकाते देखा,
ज़ख्मी हाेठों से
हरपल मुस्कुराते देखा,
बेबसी जुल्म काे
सहने का हुक़्म देती है,
जुल्म से लिपटा हुआ
रोजी का टुकड़ा देखा।
उसको सिर झुकाते देखा,
ज़ख्मी हाेठों से
हरपल मुस्कुराते देखा,
बेबसी जुल्म काे
सहने का हुक़्म देती है,
जुल्म से लिपटा हुआ
रोजी का टुकड़ा देखा।
घर के चूल्हे
उदर की आग से
जलते नहीं हैं,
राेती आंखों में
सपने कभी
पलते नहीं हैं,
जो भी आया
खरीदार इन दुकानों में,
उसने कई बार सिर्फ
जिस्म और मुखड़ा देखा......
...
अनिल कुमार सिंह
उदर की आग से
जलते नहीं हैं,
राेती आंखों में
सपने कभी
पलते नहीं हैं,
जो भी आया
खरीदार इन दुकानों में,
उसने कई बार सिर्फ
जिस्म और मुखड़ा देखा......
...
अनिल कुमार सिंह
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