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Wednesday, 20 January 2016

निर्धन

हाथ की लकीरें
पत्थर उठा कर
घिस गई ,
चूल्हे की रोशनी में
किस्मत दिखाई देती है ,
मौसम गला देते हैं
हाड़ मांस चमड़ी
धूप के टुकड़े में
छत दिखाई देती है ,
सिरकी और बांस के
घर ये बोलते हैं
निर्धन वही हैं जिन्हें
इज्ज़त दिखाई देती है .......
अनिल कुमार सिंह

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