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Sunday 31 May 2015

मंगरू चाचा बाराती



            मंगरू चाचा आज बहुत खुश थे ,सुबह सुबह नाऊ को बुला कर दाढ़ी –बाल बनवा लिए थे, दुवारे वाले आम की दो टहनियों से बंधी  उनकी धुली और नील लगी धोती सूख रही थी , छोटकी पतोह से  कह कर बक्शे  में पड़ा सिल्क का कुर्ता निकलवा कर इस्त्री करवा  लिए थे । आज गाँव के साहू सेठ के लड़के की बारात जाना था , अक्सर लोग उन्हें बुजुर्ग समझ कर बारात जाने का आग्रह नहीं किया करते थे , इस बार साहू सेठ  के इकलौते बेटे की शादी में साहू सेठ ने उन्हें घर पर आ कर विशेष बुलव्वा दिया था । अपने भतीजे नवीन को अपने साथ चलने को मना चुके थे , नवीन के कई हमउम्र दोस्त भी बारात में जा रहे थे , दोपहर का खाने में पतोह से दो करछुल दाल भात लाने को कहे ताकि दिन में पेट हल्का रहे , सेठ की बारात है ,आगे बहुत कुछ खाना पड़ेगा । दिन के चार बजे साइकिल बैंड की आवाज सुनते ही फटाफट अपने धोती बांध ,सिल्क का कुर्ता धारण कर , नया वाला गमछा करीने से कंधे पर डाल लिए और हाथ में कुबरी लेकर नवीन - नवीन पुकारने लगे । नवीन उनकी आवाज सुनकर दौड़ा दौड़ा आया और कहने लगा ,”बड़का बाबू अभी आराम करिए बारात जाने में अभी टाइम है ,हम आपको खुद लेने चले आएंगे” , मंगरू चचा ने फटकार लगाई “ “अरे कुछ देर पहले जाए से का कुच्छ घट जाए ,दुवारे की शोभा होता है बाराती” । ऐसा कह कर तुरंत नवीन को साथ लिए अपने तेज़ कदमों से सेठ के दरवाजे पहुँच गए मंगरू चाचा , उन्हें बड़े आदर के साथ बैठाया गया ,मीठे के साथ जल का सेवन कर मंगरू चाचा चुपचाप बारात चलने  का इंतज़ार करने लगे ।  बारात को जहां जाना था वह मात्र आधे घंटे का रास्ता था । धूप अपनी जगह बदल रही थी तो मंगरू चाचा की कुर्सी भी चिलबिल के पेड़ के नीचे छायानुसार अपनी जगह बदल रही थी , सेठ के घर बारात चलने  से पूर्व की पूजा पाठ चल रही थी । नवीन अपने दोस्तों में मस्त था ,चाचा आराम से बैठ आने जाने वाले लोगों से अभिवादन स्वीकार कर रहे थे । बारात जाने वाली गाड़ियों का आना शुरू हो चुका था , हलचल से बारात रवाना होने का अंदाज़ा होने पर नवीन उनके पास आया और अपने साथ एक बोलेरों की फ्रंट सीट पर अपने बड़के बाबू को बैठा दिया और खुद पीछे बैठ गया , देहाती गानों को आनंद लेते हुये कुछ ही देर में बारात गंतव्य पर पहुँच गई । 
          जनवासे में मंगरू चाचा को एक चारपाई पर बैठाया गया ,एक-एक कर गाडियाँ आती गई और जनवासा भर गया ,मंगरू चाचा की बेचैनी बारात को देख कर बढ़ गई , नवीन को बुला कर पूंछते हैं ,कि बारात में इतनी सारी महिलाएं कौन हैं? नवीन ने बताया कि  महिलाएं सब सेठ जी के घर की हैं , मगरू चाचा के  मन की आशाओं पर जैसे कुठराघात हुआ , बारात में घर की महिलाएं ? इसका मतलब बाहरी महिलाओं का नाच देखने को नहीं मिलेगा... जमाना बदल गया है ,मन ही मन बातें करते चाचा बार बार अपनी  मूंछों को ताव दिये जा रहे थे, अपने गमछा भी बार बार दुरुस्त कर रहे थे । जनवासे में आई मिठाई को उन्होने नवीन को दे दिया  , गौर से सभी बरातियों को देख कर पहचानने कि कोशिश करते ,किसी को बुला कर उसका और उसके परिवार का हालचाल लेते ,कभी शामियाने को और उसकी सजावट को गौर से निहारते ,खर्चे का अंदाज़ा लगाते और अपनी चुनौटी  से सुर्ती बना उसका रसास्वादन करने लगते । 
                 स्वागत सत्कार के बाद डी जे अपनी कान फाड़ू आवाज और चमचमाती लाइटों के साथ बारात रवानगी के लिए तैयार था।  सेठ जी के आग्रह पर सब अपनी अपनी चारपाई  छोड़ कर अपने अपने कपड़े संभालते बारात के लिए डी जे के पीछे जा खड़े हुये।  दूल्हे की कार बरातियों के सबसे पीछे थी।   मंगरू चाचा भी अपनी कुबरी लिए धोती गमछा संभालते बरातियों के साथ थे। डी जे बजना शुरू हो गया , द्वीअर्थी भोजपुरी गानो के साथ साथ ठुमकों  का दौर ज़ोर पकड़ने लगा , सभी पर धमाकेदार संगीत का असर दिख रहा था ,तरह तरह के डांस देख मंगरू चाचा के आँखों की चमक बढ़ गई, जोश का संचरण होने लगा , नवीन को अपनी कुबरी पकड़ा कर ,गमछे को कमर से टाइट बांध कर मैदान में कूद पड़े ,उन्हे देखने वालों की भीड़ चारों तरफ टूट पड़ी , वीडियो कैमरा वाला डी जे की गाड़ी पर लगे स्पीकर पर चढ़ कर मंगरू चाचा के जबर्दस्त नाच का वीडियो बना रहा था ,तभी एक महिला ने आकर मगरू चाचा का हाथ , साथ में  नाचने के लिए पकड़ लिया  इतने गरम माहौल में इतने वर्षों के बाद महिला का  स्पर्श  मंगरू चाचा के लिए 440 वोल्ट के झटके से कम नहीं था , हाथ पाव सुन्न पड़  गए जैसे साँप सूंघ गया हो ,जोश ठंडा हो गया और झटके से हाथ छुड़ाते ही माहौल में ठहाका गूंज गया । तुरंत नवीन से अपनी कुबरी ले अलग खड़े हो गए ,सभी के बहुत आग्रह पर भी टस्स से मस्स नहीं हुये , किन्तु बारात का मंच कहाँ खाली रहता है , नृत्य ,नर्तक ,संगीत सब कुछ बदलता रहता है और मंच सबके साथ - साथ चलता रहता है । एक महिला के मैदान में आते ही महिलाओं की संख्या प्रबल हो गई , मंगरू चाचा के लिए यह अनोखा अवसर था ,वे आँख फाड़े महिलाओं के डांस को देख रहे थे ,बार-बार नवीन से किरदारों की जानकारी भी ले लेते और कहते , “भला घरे क महरारून क बारात में नाच ,ई कौन सभ्यता है ” ,पर नज़रें लगातार उसी चलते फिरते मंच पर टिकी हुयी थीं। बारात के दरवाजे पर पहुँचने पर मंगरू चाचा ने मुह में भरी सुर्ती को थूक दिया और साहू सेठ के साथ सम्मानजनक तरीके से द्वार-पूजा पर आसन लगा बैठ गए, वहाँ पर उन्होने नेग चार और जलपान ग्रहण किया ,पूजा के समाप्त होने पर बड़ी मुश्किल से हाथों के सहारे खड़े हुये ,  नाचने की वजह स पैरों में जकड़न थी ,पीछे मुड़ कर देखा तो उनका एक पैर का  जूता ही गायब था , झाल , बंसवारी सब  जगह ढूंढा गया पर जाने कहाँ चला गया ,बेचारे मंगरू चाचा नंगे पाँव हो गए । बड़े ज़ोर की भूख लगी थी सुबह से यही सोचकर कि बारात में व्यंजनों का स्वाद लिया जाएगा ,मगरू चाचा ने घर पर भी ज्यादा नहीं खाया था , वे उस तरफ चल पड़े जहां खाने का इंतजाम था ,पर यह क्या ,उन्होने यह सोचा ही नहीं था कि खाना सबको अपने हाथ से लेना है , कोई परोस कर खिलाने वाला नहीं था, सब अपने अपने हाथों को उसी बर्तन में डालकर खाना निकाल रहे थे ,नवीन को उनहों कहा “हम ई गिद्ध भोज नहीं करेंगे ,कौनों दूसर इंतजाम नहीं है का” , नवीन ने नज़र दौड़ाई पर कोई इंतज़ाम नहीं दिखा ,फल वाले काउंटर से नवीन दो केले ले आया जिसे खा कर मंगरू चाचा जयमाल के लिए सुसज्जित मंच के सामने लगी प्रथम पंक्ति की कुर्सी पर बैठ गए ।  अन्य लोगों ने उन्हे जनवासे में आराम करने की सलाह दी, पर मंगरू चाचा कहाँ मानने वाले थे ,कहने लगे “बारात में आए है दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देने कि आराम करने” ।                  आखिर आशीर्वाद देते-देते रात के 12 बज गए , अब सोचा कि जनवासे में जा कर आराम करें ,नवीन का पता नहीं था ,शायद वह सो गया होगा ,जनवासे में पहुँचने पर सारी चारपाई फुल थी ,जनरेटर बंद हो गया था ,अंधेरे में किसी को पहचानना भी मुश्किल  हो रहा था , कोई पूंछने वाला भी नहीं था , चाचा नंगे पाँव वापस विवाह स्थल की ओर रवाना हो गए। मन में विचार आया कि, अब ज्यादा अच्छे से आशीर्वाद देने का मौका मिलेगा ,रात भर शादी देखने के अलावा कोई दूसरा उपाय भी नहीं था ,पैरों में ज़ोरों का दर्द था ,आँखें नींद के बोझ से बोझिल थीं , हरे थके मंगरू चाचा आखिर मंडप तक पहुँच ही गए ।  पाणिग्रहण की रस्में शुरू हो गई थी , मंडप के चारों तरफ बिछे गद्दों पर घराती और  बराती घर वाले ही मौजूद थे ।  साहू सेठ ने बड़े आदर से मंगरू चाचा को अपने पास गद्दे पर बैठने का इशारा किया ,चाचा कराहते हुये गद्दे पर बैठ गए, दूर ओसारे में बैठी महिलाएं बरातियों को प्यार के  रस से सराबोर गालियाँ सुना रही थीं ,मंगरू चाचा का ध्यान शादी में कम ,गालियां सुनने में ज्यादा था ,बहुत दिनों  के बाद उनके जीवन में यह अवसर आया था ,कभी - कभी कोई बात मन को गुदगुदाती तो अपने पिचके हुये मुंह  पर हल्की सी मुस्कान से बातों को समझने का संकेत दे देते ,पर कितनी देर तक उनका हौसला साथ देता ,बहुत थक गए थे ,उस पर पूरे दिन में दो केले से कितनी ऊर्जा मिल जाती ,रात 8 बजे सोने बाले का संयम रात 1 बजे जवाब दे गया , धीरे से खाली पड़े गद्दे पर अपने गमछे का तकिया बना कर कुबरी को बगल में रख लेट  गए , चलो जगह मिल गई सोने की , ईश्वर को धन्यवाद देकर गहरी नींद में उतर गए। जब सो रहे थे तो मंडप के पास आए कुत्ते को दौड़ने के लिए किसी ने उनकी कुबरी का दुरुपयोग कर लिया ,जबर्दस्त ज़ोर लगा कर फेंके जाने से बेचारी वह भी टूट गई ,देखते - देखते भोर हो गई थी उन्हें उठाया गया , उठने में बड़ी दिक्कत हो रही थी ,भला इस उम्र में नाचने के बाद जोड़ों का तो यह हाल होना ही था ,फिर भी उठे तो देखा की विदाई की तैयारी हो रही थी ,नवीन को अपने पास देख उसे बहुत भला बुरा कहा ,रात की दुर्दशा की कहानी बताई , कुबरी की तरफ निगाह पड़ी तो वह भी गायब ,नवीन टूटे हिस्से दिखा कर बोला यह तो टूट गई बड़के बाबू”, जब हम ही टूट गए तो कुबरी का क्या दोष , मंगरू  चाचा ने दबी हुयी आवाज़ में कहा । सुबह की नित्य क्रिया नंगे पाँव ,बिना कुबरी के ,पैरों की असहनीय पीड़ा के साथ मंगरू चाचा को करनी पड़ी ,सुबह का नास्ता  बैठा कर करवाया गया , तब जा कर कहीं भूखे पेट में अन्न गया , खैर विवाह सम्पन्न होने के बाद बरातियों को घर पहुँचने की जल्दी होती ही है , मंगरू चाचा जिस बोलेरों में आए थे उसी में बैठ वापस गाँव आए ,उनकी बिगड़ी हालत देखकर ड्राईवर ने उन्हें घर तक पहुंचाया ,मंगरू चाचा के मन में बदले सामाजिक परिवेश में हमारे रीति रिवाजो में हुये परिवर्तन को लेकर अंतर्द्वंद्व चल रहा था ,तीन दिन वाली बारात में थकान उतारने का भी वक़्त मिलता था ,सभी रीति रिवाज कायदे से होते थे ,नाच गाने का तरीका भी अलग था ,इस भागमभाग वाली बारात से तो अच्छा है दुल्हन को सिर्फ दूल्हा जा कर ले आए ... समय  तेज़ी से बदल रहा है ... हो सकता है भविष्य में ऐसा ही हो ... पर जो भी हो अब हम बारात कभी नहीं जाएंगे , मंगरू चाचा ने ऐसा दृढ़ निश्चय किया।

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