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Sunday 11 October 2015

रेत की लहरों पर

रेत की लहरें खामोशी से
अब भी सुना करती हैं वही गीत
जो कभी अमावस की रात को
तुम्हारे चेहरे की चाँदनी से लिपटकर
नम हवाओं ने गाये थे .......
कितने बरस गुज़र गए
वो चाँदनी अब वहाँ रोशन नहीं होती ,
मैं अब भी चला जाता हूँ उन रेत की लहरों पर ,
जहां तुम्हारी चन्दन सी खुशबू लिए
हवाएँ वही गीत लिखती हैं ....रेत की लहरों पर...........
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सौ बार जनम लेंगे ------------------

अनिल

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