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Sunday 11 October 2015

फिर पाँच साल बाद आओगे न

ओह!
फिर आ गए,
पाँच साल पहले भी तो तुम आए थे,
मेरी ज़िंदगी को बदलने का
झांसा लेकर......
देख लो ,
ये आज भी वैसी ही है,
हाँ ,तुम जरूर बदल गए,
इन पाँच सालों में ,

देख लों,
तकिये पर तुम्हारे
पिछले झंडे का खोल,
रस्तों के गड्ढे और
उदास बिजली के पोल ,
आज फिर से दोहरा दो
वही मीठे मीठे बोल
और हाँ,
ये भी बताते जाओ,
फिर पाँच साल बाद आओगे न ,
इस बस्ती में तुम्हारे आने से ,
कुछ पल चेहरों के कमल खिलते हैं ........
अनिल कुमार सिंह

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