तन्हाइयों की सिकुड़न जब हद से गुज़रती है ,
तेरे ख़त , मैं दराज़ों से निकाल लेता हूँ ....
नर्म लिखावट से लिपटे आंसुओं के टुकड़े ,
लबों से लगा कर कुछ प्यास बुझा लेता हूँ ,
महकती है मुहब्बत ख़तों से आज भी ,
कि ख़त फूल कभी मुरझाते नहीं हैं ,
हाँ , ये खुद रोते हैं फूट फूटकर ,
कि ख़त लिखने वाले, अब कभी आते नहीं हैं ........
अनिल
तेरे ख़त , मैं दराज़ों से निकाल लेता हूँ ....
नर्म लिखावट से लिपटे आंसुओं के टुकड़े ,
लबों से लगा कर कुछ प्यास बुझा लेता हूँ ,
महकती है मुहब्बत ख़तों से आज भी ,
कि ख़त फूल कभी मुरझाते नहीं हैं ,
हाँ , ये खुद रोते हैं फूट फूटकर ,
कि ख़त लिखने वाले, अब कभी आते नहीं हैं ........
अनिल
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