टीन की छत पर थिरकती हैं बूंदें ,
जागती हैं रातें अाँखों को मूंदे
रेशमी चादर की लोरी ओ थपकी,
झरोखों से ठण्डी बयारों की झपकी,
छिप गई चाँदनी बादलों से लिपट कर,
गरम सांसों के कोहरे से भरा घर,
अकेले में कितना सताता है सावन,
हाँ, पानी से प्यास बढ़ाता है सावन.....
अनिल
जागती हैं रातें अाँखों को मूंदे
रेशमी चादर की लोरी ओ थपकी,
झरोखों से ठण्डी बयारों की झपकी,
छिप गई चाँदनी बादलों से लिपट कर,
गरम सांसों के कोहरे से भरा घर,
अकेले में कितना सताता है सावन,
हाँ, पानी से प्यास बढ़ाता है सावन.....
अनिल
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