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Thursday, 11 August 2016

खेल मौत का मौत से पहले रुकता नहीं है

डर ये कैसा? धधक रहा खलिहान तो क्या?
बारूदों के बीज उगाये तुमने ही थे ,
जवां फसल तैयार है आग दूर से सेंको,
न रोको अब खाक की हद तक जल जाने दो,
कि खेल मौत का, मौत से पहले रुकता नहीं.....
अनिल

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