कितनी भी सजाता हूँ तस्वीर जिन्दगी की,
ये गर्द उदासी की परछाई सी रहती है,
ये वक़्त भी दे जाए ना बोझ अहसानों के,
अजनबी लम्हों से मेरी दूरी सी रहती है,
बहुत कठिन है मेरा भीड़ का हिस्सा होना,
हर तरफ भीड़ है, चलो खुद में समाया जाए.....
अनिल
ये गर्द उदासी की परछाई सी रहती है,
ये वक़्त भी दे जाए ना बोझ अहसानों के,
अजनबी लम्हों से मेरी दूरी सी रहती है,
बहुत कठिन है मेरा भीड़ का हिस्सा होना,
हर तरफ भीड़ है, चलो खुद में समाया जाए.....
अनिल
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