जर्जर छप्पर की चौखट में
शीश झुका कर हाथ जोड़ कर
एक मौसम में वह आता है
मुझको मेरे दर्द दिखा कर
टूटी बंस -खटिया पर बैठ कर
स्वप्निल दुनियां में ले जाता है,
खाली पेट ,फटे वस्त्रों में
झुर्री वाले जवां चेहरों में
दाने को मोहताज़ घरों में
बस दिखता उसको मतदाता है ,
हाथ जोड़ कर एक मौसम में वह आता है…
भूखे को रोटी दिखला कर ,
प्यासों को दो बूँद दिखाकर ,
फटी जेब में हरे नोट रख ,
झूठी आस धरा जाता है ,
हाथ जोड़ कर एक मौसम में वह आता है,
बारिश में नहीं घर टपकेगा ,
चूल्हा दोनों वक़्त जलेगा,
सरिया में अब बैल बंधेंगे ,
ढाँढ़स एक बंधा जाता है
हाथ जोड़ कर एक मौसम में वह आता है.......
चूल्हा क्या ढिबरी नहीं जलती,
समय पर मज़दूरी नहीं मिलती ,
माँ के इलाज़ में खेत बिक गए ,
उस पर, हर मौसम तड़फाता है ,
पांच साल तक नज़र नहीं आता,
जाने कहाँ चला जाता है……
हाथ जोड़ कर एक मौसम में जो आता है ……
शीश झुका कर हाथ जोड़ कर
एक मौसम में वह आता है
मुझको मेरे दर्द दिखा कर
टूटी बंस -खटिया पर बैठ कर
स्वप्निल दुनियां में ले जाता है,
खाली पेट ,फटे वस्त्रों में
झुर्री वाले जवां चेहरों में
दाने को मोहताज़ घरों में
बस दिखता उसको मतदाता है ,
हाथ जोड़ कर एक मौसम में वह आता है…
भूखे को रोटी दिखला कर ,
प्यासों को दो बूँद दिखाकर ,
फटी जेब में हरे नोट रख ,
झूठी आस धरा जाता है ,
हाथ जोड़ कर एक मौसम में वह आता है,
बारिश में नहीं घर टपकेगा ,
चूल्हा दोनों वक़्त जलेगा,
सरिया में अब बैल बंधेंगे ,
ढाँढ़स एक बंधा जाता है
हाथ जोड़ कर एक मौसम में वह आता है.......
चूल्हा क्या ढिबरी नहीं जलती,
समय पर मज़दूरी नहीं मिलती ,
माँ के इलाज़ में खेत बिक गए ,
उस पर, हर मौसम तड़फाता है ,
पांच साल तक नज़र नहीं आता,
जाने कहाँ चला जाता है……
हाथ जोड़ कर एक मौसम में जो आता है ……
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