Search This Blog

Tuesday, 12 May 2015

मक्के के खेत और विदेशी मेहमान



मक्के  के खेत और  विदेशी मेहमान '

पहाड़ों के हालात इन्सानों को मेहनती और साहसी बना देते हैं , जीवन चक्र के लिए जरूरी खेती भी इतनी आसान नहीं ,दुर्गम पहाड़ियों में ऊंची-ऊंची मेड़ों के सहारे सीढ़ीनुमा खेतों में प्राकृतिक जलस्त्रोतों से पानी की राह लहलहाते मोहक खेतों का पोषण करती है , प्रकृति का नज़ारा देखते ही बनता है।  इस बार मक्के की फसल अच्छी है ,जानवरों ने भी नुकसान नहीं किया है , अकरम और रेशमा अपने सीढ़ीनुमा खेतों पर बतियाते चले जा रहे थे , तभी दोनों के पैर ठिठक गए ,ये क्या ? बड़ी दूर में मक्के के पौधे  धराशायी हो गए थे , जैसे किसी ने जानबूझ कर कुचला हो ,”हाय अल्लाह ! ये कैसे हुआ?”  रेशमा ने अफसोस भरी ज़ुबान में कहा , चलो कोई बात नहीं मैं इन्हें काट लेता हूँ कम से कम जानवरों को हरा चारा  मिल जाएगा ,ऐसा कह कर अकरम हंसिये  से गिर चुके  पौधों को काटने लगा , काटते काटते खेत में खून के निशान देख चौंक पड़ा , रेशमा! रेशमा! इधर आओ ,इधर आओ , ज़ोर से चिल्लाया , रेशमा ने अपने बारीक नज़रों से खून के निशानो का कुछ दूर तक पीछा  किया , थोड़ी  ही दूर पर उसे एक मफलर , कुछ खत्म सिगरेट के फ़िल्टर  और अखरोट के छिलके और बुलेट के खाली खोखे नज़र आए ,दोनों को माजरा समझते देर नहीं लगी, “हरामजादों को हमारा ही खेत मिला था” रेशमा ने गुस्से से रुँधे स्वर से कहा, मक्के और दहशतगर्दों का पुराना नाता है , एक खेत से दूसरे खेत को पार करते करते बहुत दूर निकल जाते हैं ,ऊंचे ऊंचे मक्के के खेत उनके छिपने का माकूल ठिकाना होते हैं । देखते देखते शाम हो गई ,अकरम  ने कटे हुये बोझ को सिर पर रखा और दोनों वापस घर की ओर चल दिये । दहशतगर्दों के दस्ते गुज़रने शुरू हो गए हैं ,तभी तो कल रात से शेरा पोस्ट से फ़ाइरिंग की आवाज़ें आ रही थी ,जीना मुश्किल कर दिया है ,इन कुत्तों  ने .... बातें करते करते दोनों अपने घर पहुँच गए ,अकरम ने सिर से मक्के  का बोझ उतारा उसे गंड़ासे से चारा बनाने के लिए काटने कागा , मन ही मन गुस्से से हाथ तेज़ तेज़ पर बेतरतीब चल रहे थे , सुबह जो गोलियों की तेज़ आवाज़ें आ रही थी ,तब एंकाउंटर हुआ होगा , मेरे ही खेत में ,न जाने कितने थे, रात इसी गाँव के किसी घर में डेरा डाला होगा ..... तरह तरह के सवाल - जवाब मन में चल रहे थे ,उधर रेशमा बगल के बेतार नाले के पास वाले अखरोट के पेड़ पर खेल रहे बच्चों को बुला लायी ,बच्चे भी बात सुन कर दहशतजदा हो गए ... अंधेरा हो चला था, सबने एक साथ मक्के की रोटी के साथ कड़म का साग खाया ,और बिस्तर पर जाने की तैयारी करने लगे ... तभी अकरम ने रेशमा से कहा “तुम तहखाने में बच्चों को लेकर सो जाओ,मैं यहीं कमरे में सो जाता हूँ । “ तहखाने का रास्ता घर के पीछे से सुरंगनुमा रास्ते से जाता था,अपने बचाव के लिए ज़्यादातर लोगों ने घर में तहखाने बनवाए थे । सब अल्लाह से अच्छे कल की दुआ मांग कर अपने अपने बिस्तर पर चले गए ,ये रातें खौफ वाली होती ही हैं ,भला नींद किसे आती है । रात में एल ओ सी पर गोलियों की आवाज़ें इन परदेशियों के आने की खबर दे रही थी ,बेतार नाले की निरंतर आवाज़  साफ सुनाई दे रही थी। अकरम सो नहीं पा रह था ,जरा सी आहट  पर उठ कर बैठ जाता और दरवाजे के सुराख से बाहर झाँकता , फिर बिस्तर पर पड़  जाता। रात के लगभग डेढ़ बजे थे कुत्तों के भोंकने की आवाज से वह फिर चौंक गया ,उठकर झाँका तो पास वाले नाले के पास जुगनू की तरह जलकर बंद हो जाने वाली रोशनी दिखाई दे रही थी ,जरूर कुछ लोग गाँव की तरफ ही आ रहे थे, रोशनी जैसे जैसे नजदीक आ रही थी , अकरम का शरीर पसीने से तर बतर हो रहा था ,पर वह तैयार था, वह कोई पहली बार यह सब नहीं देख रहा था , पदचापों की आवाज़ तो उसी के घर की ओर बढ़ रही थी  ,उसने आंखे बंद की और अल्लाह से सलामती की दुआएं मांगने लगा ,तभी ज़ोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज पर वह दरवाजे की ओर बढ़ा और सहम कर दोनों किवाड़ों को खोल कर देखा , दो नौजवान, चेहरे पर हल्की दाढ़ी , हुये कंधे पर भारी भारी बैग टांगे और हाथों में भारी हथियार लिए बड़े अदब के साथ अकरम से “अस्सलाम  अलेकुम”  कहते हुये चौखट पार  कर भीतर बरामदे में पड़े तख्ते पर बैग रख कर बैठ गए,अकरम हाथ जोड़े खड़ा रहा। उनमें से एक जिसे दूसरा टाइगर कह रहा था ,ने कड़े लहजे में पूंछा  और कौन कौन है घर में ? कोई “नहीं साहब मैं अकेला हूँ” डरते हुये अकरम ने जवाब दिया , डारे पर टंगे रेशमा के कपड़ों की ओर इशारा कर के टाइगर  बोला “तेरी जनानी किधर है ”, साहब मेरी सास मर गई है सो वो  माइके गई है  साहब ,हाथ जोड़े वह दीन भाषा में बोला । चल बड़ी  भूख लगी है ,मुर्गा सुरगा है तेरे पास  ,जी है साब, अभी लता हूँ ,अकरम जल्दी से भागता हुआ मुर्गों के दड़बे पर गया और एक बड़ा मुर्गा ले आया ,और छुरी ले कर खुद ही काटने लगा । दोनों अकरम को मुर्गा रोस्ट करके लाने का आदेश दे कर अपने साथ लाये भारी भरकम मोबाइल सेट से बात करने लगे ,अकरम डरा हुआ सुलगते तंदूर में लकड़ी डालने लगा ताकि तंदूर को फिर से गरम किया जा सके । आधी रात में उसके घर की चिमनी से धुंआ उठता देखा गश्त कर कर रहे फौजी भी अकरम के घर की ओर बढ़ चले , तंदूर गरम हो चुका  था , फिर से  दरवाजे के खटखटाने की आवाज़ से अकरम समझ गया ,और वे दोनों एक कोने में चिपक  कर खड़े हो गए, दोनों ने  अपने हाथों की अंगुली को ट्रिगर पर रखा था , अकरम ने दरवाजा खोला, तेज़ रोशनी वाली टॉर्च की रोशनी से उसका सामना हुआ, और कौन है घर के अंदर, कोई नहीं साब  मैं अकेला हूँ , तो ये धुआँ कहाँ  से उठ रहा है ,,साबजी बीबी घर पर नहीं  है भूखे  सो गया था , साबजी नींद नहीं आ रही थी सो रोटी बना रहा था साबजी ... फौजी उल्टे पाँव वापस लौट गए, उसने राहत की सांस ली ।
दरअसल फौज को आधी रात में चिमनियों से निकलने वाले धुंऐ से अंदाज़ा हो जाता था ,पर वो कोई ऑपरेशन किसी के घर में रात में नहीं करते, किन्तु उस घर पर निगरानी रखते थे । अकरम ने देशी मसालों में लपेटकर मुर्गे को तंदूर में पकाया और उन्हें सौंप दिया ,टाइगर ने अपने बैग  से विदेशी शराब की बोतल निकाली और इस तरह पीने लगा  जैसे कई दिनों  से कुछ खाया पीया ही  न हो  ,शुरूर चढ़ने  लगा और वे लुढ़क कर फर्श पर बिछे कालीन पर अपने बैग  को तकिया बना सो गाए , सोते समय अकरम को कहा कि सवेरे वाली आजान के समय उठा देना ,अकरम रात भर वहीं बैठा रहा ,उन दोनों को देखता, मन ही मन सोचता कि ये जेहाद की बात करने वालों का पेट कौन भरता  है , इतने मंहगे हथियार , इनकी कीमत से तो आराम से जिंदगी कट सकती है , हम जैसों के लिए बच्चों की भूख शांत करना सबसे बड़ा जेहाद है , जानवर , मुर्गी न पालो तो खेती से  पेट भी नहीं भर सकता   , बार बार उसका ध्यान तहखाने की तरफ भी जा रहा था ,वे सब भी वहाँ परेशान होंगे ,शुक्र है इन कमीनों को उनका पता नहीं चला, अकरम रात भर वहीं फर्श पर बैठा अपने आप से बातें करता रहा ।
देखते देखते सुबह की पहली अज़ान का वक़्त हो गया , अज़ान शुरू होते ही अकरम ने उन्हें  जगाया , दोनों आंखे मसलते हुये जाग गए, टाइगर  ने अकरम से पूंछा वज़ू कहाँ करते हो ,अकरम ने बाहर इशारा करते हुये कहा ,साबजी बगल वाले चश्में मेँ ,चश्मा नाले की मुंडेर पर था और उसका पानी लगातार नाले में समाता  था , साफ पानी का है साबजी , टाइगर उसे घूरते हुये एक हाथ मेँ टॉर्च लिए बाहर चल पड़ा , बाहर अभी भी अंधेरा ही था  ,दबे कदमों से जैसे ही नाले की ढाल की कोर पर पहुंचा किसी ने उसके सिर पर करारा वार किया ,टाइगर गोल गोल बड़े पत्थरों के साथ निस्तेज हो कर नाले के तेज़ बहाव मेँ औंधे मुंह गिर पड़ा , सुबह सुबह की आजान मेँ उसकी चीख  दब के रह गई, दूसरा साथी और अकरम उसका इंतज़ार कर रहे थे ,चिड़ियों का चहकना शुरू हो गया था ,अंधेरा धीरे धीरे दूर हो रहा था ,दोनों  घबराए हुये थे ,क्या हुआ टाइगर वापस नहीं आया, टाइगर पांचों वक़्त का नमाज़ी था ,खतरों से खेलना  जानता था ,कहीं मुझे छोड़ कर भाग तो नहीं गया ,नहीं नहीं वो मर सकता है  पर मुझे छोड़ कर भाग नहीं सकता ,दोनों  बात ही कर रहे थे कि दरवाजे पर जूते पटकने की  आवाज़ हुयी , अकरम ने टाइगर के लौटने का सोच कर दरवाजा खोला, किन्तु सामने फौजी दस्ता था दूसरा साथी कुछ संभल पाता  उससे पहले सैनिकों ने उसे दबोच लिया ,सैनिक दस्ते के कमांडर ने पूंछा  और कितने हैं ,अकरम ने कहा साबजी एक बाहर वज़ू करने गया था, पता नहीं, अभी तक आया नहीं ,सैनिकों  ने पूरे घर की तलाशी ली ,बाहर निकल  कर पीछे के  रास्ते तहखाने के मुहाने तक पहुंचे ही थे ,कि  रेशमा  खून से लथपथ हाथ में गंड़ासा लिए खड़ी थी , उसकी आँखों में क्रोध और बदन खौफ से  सहमा था ,हर वक़्त अपने सिर को दुपट्टे से बांधे  रखने वाली रेशमा  का दुपट्टा कहीं गायब था ,बाल  बिखरे थे ,गरज कर बोली “हाँ मैंने उस कुत्ते को  मार डाला ,हाँ हाँ मैंने ही मार डाला उसे ” .... सब आवाक थे, वह चिल्लाते हुये दूसरे साथी पर झपट्टा मारने को बढ़ी, परंतु  सैनिकों ने उसे रोक दिया ,अकरम भी बड़े  आश्चर्य से रेशमा को देख रहा था ,बच्चे बेसुध सोये थे ,सुबह होते ही गाँव के लोग टाइगर  को देखने नाले के पास उमड़े ,टाइगर पानी  के तेज़ बहाव में  एक बड़े पत्थर से अटका था, रेशमा पूरे गाँव की शान थी , पूरे गाँव में रेशमा की चर्चा थी ,रेशमा की बहादुरी से प्रेरित गाँव वालों ने ग्रामीण रक्षा दल बनाया ,नतीजतन बेतार नाले के किनारे से इन क्रूर विदेशी मेहमानों ने आना बंद कर दिया । अब मक्के  के खेतों में दहशत नहीं उगती ।   

                                          अनिल कुमार सिंह


(यह सुनी सुनाई वारदातों पर आधारित कपोल कल्पित कहानी है ,किसी जीवित पत्र से मेल संयोग हो सकता है )

No comments:

Post a Comment