छिपाए फिरते हैं इक नशे को ज़माने से ,
मेरी ज़िंदगी भी जैसे सियासत सी हो गई,
तेरी खुशबू मेरी रूह में शामिल है हरदम,
तेरी यादों को पीने की आदत सी हो गई............
मेरी ज़िंदगी भी जैसे सियासत सी हो गई,
तेरी खुशबू मेरी रूह में शामिल है हरदम,
तेरी यादों को पीने की आदत सी हो गई............
अनिल
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