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Sunday, 13 March 2016

रात

रात के इंतजार में,
शाम का रिहर्सल है,
सूरज की रोशनी में,
सितारों का दम घुटता है,
रात के हुक़्म तक,
चाँद को परदे में रहने दो,
कि चाँद का श्रृंगार अधूरा है,
शाम रात के पल्लू में,
टांकती है सितारे,
लगाती है काजल
मैं ढूंढता हूं दियासलाई,
ढिबरी और चूल्हा जलाने के लिये....
रात के आने से बड़े खुश हैं,
उल्लू शियार और चमगादड़....

अनिल

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