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Sunday, 13 March 2016

तूँ बहुत दूर है मुझसे

तूँ बहुत दूर मेरी निगाहों से
कोहरा कटता है मेरी आंहों से ,
बदहवास रूह जिस्म बेचैन है ,
तेरी खुशबू से महकती रैन है ,
चाँदनी तेरा नाम गुनगुनाती है,
लिपट कर मुझसे मुझे जगाती है ,
उठ कर देखो कि क्या नज़ारे हैं ,
ज़मीं पे नाचते सितारे हैं,
कलियाँ चटकी हैं आज रातों में ,
शहद सा घुल गया है बागों में ,
यूं लगा कि जैसे तुम आई,
हाय ! दूर तक मुस्कुराती तनहाई ,
यूं ही मेरी यादों से लिपट कर रहना,
तेरी यादों से महकती हर शाम मिले,
मैं जानता हूँ कि, तूँ बहुत दूर है मुझसे,
तेरे एहसास की बाहों में,मुझे आराम मिले ...........
अनिल कुमार सिंह

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