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Wednesday, 15 July 2015

टूटते बहुत हैं तुझे याद कर करके ,
हम चाहने वाले हैं तेरे ,रूठते नहीं ।
आज़माने वाले मुहब्बत को मौत से ,
तेरे दिखाये ख्वाब कभी भूलते नहीं ।
इक इक खुशी पे तेरी ,सब झूमते रहे ,
हम मिटते रहे तुझपे ,तुझे फुरसतें नहीं।
यादों के पत्ते पत्ते तेरा नाम ले रहे,
मुरझा चुके हैं फिर भी , कभी टूटते नहीं।
दरिया के किनारों की तक़दीर क्या कहें,
मिलते नहीं कभी भी ,हाथ छूटते नहीं।
अनिल

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