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Sunday 23 August 2015

"ज़िंदगी के दर्द "

"ज़िंदगी के दर्द "
ज़िंदगी के सुनहरे रंग बहुत आकर्षित करते है , सब अपने -अपने दामन में अपने- अपने सपने लिए चलते हैं और सपने भी नित रोज़ नया रंग ले लेते है,ज़िंदगी की ऊंचाइयों में जितना हर्ष है ,उतना ही विषाद उसकी गहराइयों में है ,अनंत सीमाओं में अनंत हर्ष और अनंत विषाद । पीड़ा देखी नहीं जाती, कई प्रश्नो के साथ चिंता की लकीरों को गहरी करती जाती हैं ।
बात कुछ समय पहले की है ,मैं और मेरे दोस्त आनंद ,मेरी पत्नी अंजू को परीक्षा दिलवाने लखनऊ गए थे ,पत्नी को परीक्षा केंद्र पर पंहुचने के बाद हमें समय बिताना था और कुछ भूख भी लग रही थी ,आनंद ने कहा चलिये आपको आज शर्मा की कचोड़ी खिलाता हूँ ,खाई नहीं होगी आपने कभी ऐसी कचोड़ी ... मैंने हामी भर ली और चल दिये तेली बाग से आगे ....
साधारण से दुकान पर सुबह सुबह बहुत भीड़ उसकी प्रसिद्धि को दर्शा रही थी ,दुर्भाग्य से कचोड़ी खत्म हो चुकी थी उसने कुछ देर ठहरने को कहा ,आनंद तब तक एक दोने में जलेबी ले आए ,बाकी भी लोग जलेबी पर टूट पड़े थे ,बाहर दो बड़े बड़े डस्ट्बिन रखे थे ,मेरी नज़र डस्ट्बिन के पास खड़े एक लगभग 13-14 वर्षीय बालक पर पड़ी जो डस्ट्बिन से कचरा निकाल कर एक बड़े प्लास्टिक के बोरे में डाल रहा था और कभी कभी दोनों को चाट भी रहा था , यदि किसी दोने में कुछ खाने का जूठा रहता तो तो वह लँगड़े पाँव से दौड़ते हुये एक नन्हें बालक को ले जाकर देता था जो थोड़ी दूर एक मुंडेर पर बहुत सुस्त भाव से बैठा था ,उसकी उम्र लगभग आठ साल रही होगी,उसके पास भी एक बोरा था जो खाली था ।
बड़े लड़के के पाँव में शायद चोट लगी थी ,इसीलिए वह चलते और दौड़ते समय लंगड़ा रहा था , जब वह फिर से बिन के पास आया तो मैंने उसे बुलाया और 10-10 के दो नोट उसे देकर कहा "तुम दोनों दुकान से जलेबी लेकर खा लो "
वह लड़का दौड़ा दौड़ा छोटे वाले लड़के के पास गया और दूसरे लड़के को एक नोट दे दिया ,मैंने सोचा था कि वे दोनों दुकान पर आएंगे और जलेबी खाएँगे ,किन्तु ऐसा हुआ नहीं ....
दोनों के चेहरे पल भर के लिए खिल गए ,और दोनों अपने अपने बोरों को कंधे पर रख दुकान से विपरीत दिशा में चलते हुये ओझल हो गए ...
आनंद से मैंने आश्चर्य से पूंछा ,ये दोनों जलेबी खाये बिना ही चले गए?
आनंद ने कहा .... शायद उन्हें दिन भर कचरा बीनने से इतने ही रुपए मिलते हों ... वे इसकी कीमत जानते हैं .... घर पर जाकर देंगे तो शायद शाम के चूल्हे में जान आएगी ...
मैं बहुत पछता रहा था ... ऐसा मालूम होता तो कुछ और मदद कर पाता उन दोनों की ... ज़िंदगी की गहराइयों में बहुत दर्द है ...
परीक्षा का समय समाप्त होने पर, हम अपनी गाड़ी से वापस फ़ैज़ाबाद के रास्ते पर एक आइस क्रीम पार्लर पर रुके , मेरा मन बहुत दुखी था .... मैने आनंद से कहा आइस क्रीम मेरे लिए मेट लाना ......
अनिल कुमार सिंह

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