Search This Blog

Monday 28 December 2015

नए वर्ष तुम्हारा स्वागत है

वक़्त के तिरछे रैम्प पर
मखमली ख्वाबों को फिसलने दो
ज़ख़्मी सिसकती एड़ियों पर
दिखावे के मरहम को मलने दो
वक़्त की चोट से उधड़ चुकी
चमड़ी की परतों को
मखमली चादर से ढक दो ,
मेरे हताशा भरे चेहरे पर
नकली मुस्कराहट का
मुलम्मा चढ़ा दो ,
हारा थका हूँ तो क्या ,
मुझे भी चलने दो ,
जगमगाती रंगीन रोशनी में ,
थिरकते हुए संगीत पर ,
नए ज़माने के फैशन के साथ ,
हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए ,
इक नशा खड़ा है कुछ दूर मुझसे ।
मैं अपने ज़ख्मों को छिपाए ,
बेताब हूँ उससे मिलने को ,
और ये कहने को ,
"नए वर्ष तुम्हारा स्वागत है" !
अनिल कुमार सिंह

No comments:

Post a Comment