वक़्त के तिरछे रैम्प पर
मखमली ख्वाबों को फिसलने दो
ज़ख़्मी सिसकती एड़ियों पर
दिखावे के मरहम को मलने दो
मखमली ख्वाबों को फिसलने दो
ज़ख़्मी सिसकती एड़ियों पर
दिखावे के मरहम को मलने दो
वक़्त की चोट से उधड़ चुकी
चमड़ी की परतों को
मखमली चादर से ढक दो ,
मेरे हताशा भरे चेहरे पर
नकली मुस्कराहट का
मुलम्मा चढ़ा दो ,
हारा थका हूँ तो क्या ,
मुझे भी चलने दो ,
जगमगाती रंगीन रोशनी में ,
थिरकते हुए संगीत पर ,
नए ज़माने के फैशन के साथ ,
हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए ,
इक नशा खड़ा है कुछ दूर मुझसे ।
मैं अपने ज़ख्मों को छिपाए ,
बेताब हूँ उससे मिलने को ,
और ये कहने को ,
"नए वर्ष तुम्हारा स्वागत है" !
अनिल कुमार सिंह
चमड़ी की परतों को
मखमली चादर से ढक दो ,
मेरे हताशा भरे चेहरे पर
नकली मुस्कराहट का
मुलम्मा चढ़ा दो ,
हारा थका हूँ तो क्या ,
मुझे भी चलने दो ,
जगमगाती रंगीन रोशनी में ,
थिरकते हुए संगीत पर ,
नए ज़माने के फैशन के साथ ,
हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए ,
इक नशा खड़ा है कुछ दूर मुझसे ।
मैं अपने ज़ख्मों को छिपाए ,
बेताब हूँ उससे मिलने को ,
और ये कहने को ,
"नए वर्ष तुम्हारा स्वागत है" !
अनिल कुमार सिंह
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