मरीचिकाओं में तरसती प्यास , आंसुओं की बूंद से बुझती नहीं है , दर्द के सायों को बदन पर लपेटे, चलो आज खुशियों की तलाश करें... सर्द कोहरे ने अपने साये में छिपायी जरूर होगी गुनगुनी धूप, ठिठुरते हुये ही सही , चलो आज उस धूप की तलाश करें ... दरकते छत की दरारों में श्वांस लेते मकड़ी जैसे कितने जीवन, निराशाओं के ढेर में चलो आज आशाओं की तलाश करें , चलो आज खुशियों की तलाश करें... अनिल कुमार सिंह |
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