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Friday, 25 December 2015

एक पत्थर और मारो .........

चल रहा गति में वो अपनी,
छिद्र से छिप कर निहारो,
ज़ख़्मों के ईंधन से चलता,
एक पत्थर और मारो ।

जो तपा झंझावातों में,
दम रहा उसकी बातों में ,
आँधियाँ रुक मार्ग देती ,
रुका नहीं काली रातों में ,
उसको जो चाहे पुकारो ,
एक पत्थर और मारो ,

रास्ते के पत्थरों को,
तराशता निर्बाध निर्झर,
शूल खुद राहें दिखाते,
सत्य पर रहता जो निर्भर,
सत्य की सूरत सँवारो ,
एक पत्थर और मारो .........

अनिल कुमार सिंह

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