हे ज्ञानी कवि !
इतना सूक्ष्म भी न लिखो
कि हवा हो जाए,
इतना स्थूल भी न लिखो
कि दिमाग की परतों
की बारीक सलवटों में
घुसने भी न पाये ,
तुम्हारा लिखा
तुम ही न समझ पाओ,
ऐसा ज़ुल्म भी न करो ,
हे ज्ञानी कवि !
कुछ दया करो ,
हमारे अल्प ज्ञान पर ......
..........................
..........................
हम इतने सहिष्णु भी नहीं ................
इतना सूक्ष्म भी न लिखो
कि हवा हो जाए,
इतना स्थूल भी न लिखो
कि दिमाग की परतों
की बारीक सलवटों में
घुसने भी न पाये ,
तुम्हारा लिखा
तुम ही न समझ पाओ,
ऐसा ज़ुल्म भी न करो ,
हे ज्ञानी कवि !
कुछ दया करो ,
हमारे अल्प ज्ञान पर ......
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..........................
हम इतने सहिष्णु भी नहीं ................
अनिल कुमार सिंह
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