daideeptya
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Saturday, 5 December 2015
मुहब्बत का हिसाब
बेहिसाब का हिसाब करते हाे,,
खुद को मुहब्बत की किताब कहते हाे,
मेरी मुहब्बत तो बेहिसाब दाैलत है,
क्यों हिसाब पर हिसाब करते हाे.....
अनिल
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