Search This Blog

Sunday, 31 July 2016

अंजान सी मंजिल, बड़ा अंजान सफ़र

अंजान सी मंजिल, बड़ा अंजान सफ़र,
बेचैन कर देती हैं, ये गलियाँ, ये डगर,
बड़े हक़ से खींच कर, मेरा दामन,
न जाओ छोड़ कर , कहता है, ये मेरा शहर.....
अनिल

No comments:

Post a Comment