तुम रात बिताने की खातिर न आये होते,
मैं शाम की चादर को यूं ही ताने रहता,
शाम के सिंदूर को माथे पर सजा लेते,
तो रात नहीं होती , न चाँद ही निकलता .....
मैं शाम की चादर को यूं ही ताने रहता,
शाम के सिंदूर को माथे पर सजा लेते,
तो रात नहीं होती , न चाँद ही निकलता .....
अनिल
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