Search This Blog

Sunday, 31 July 2016

मैंने तो मुहब्बत की है

चुभते हैं बहुत मेरी सूख चुकी आँखों में,
ये ख्वाब काँच के न बने होते, तो क्या हो जाता ,
रात झुक कर सहलाती है मेरे बालों को ,
जागती पलकों के किवाड़ों से नींद भी नहीं आती,
जल चुकी मुहब्बत की नर्म राख के बिछौने पर,
कुछ अरमान सुलगते हैं, कुछ शोले बचे हैं शायद...

यूं ही कटती हैं मेरी रातें, तुम भी जान लो....
मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है ......
अनिल

No comments:

Post a Comment