सूखा दिन झुलसा, सूरज का बोझ उठा कर,
थकी शाम आतुर है रात जलाने को ,
आँख के आँसू कम पड़ते हैं,सुनो गगन !
बरसा दो तुषार ,आग बुझाने को ,
झुलसे पर्णों, झुलसे स्वप्नों को, दे दो जीवन,
जल चुकी सुगंधि, फिर महका दो मन उपवन ,
मंद रहे शीतल बयार, शोर न मचने पाये,
शाख के पंछी को पत्तों की चोट न लगने पाये,
सूरज के उगने से पहले रात न जगने पाये..........
सुनो गगन !
थकी शाम आतुर है रात जलाने को ,
आँख के आँसू कम पड़ते हैं,सुनो गगन !
बरसा दो तुषार ,आग बुझाने को ,
झुलसे पर्णों, झुलसे स्वप्नों को, दे दो जीवन,
जल चुकी सुगंधि, फिर महका दो मन उपवन ,
मंद रहे शीतल बयार, शोर न मचने पाये,
शाख के पंछी को पत्तों की चोट न लगने पाये,
सूरज के उगने से पहले रात न जगने पाये..........
सुनो गगन !
अनिल
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