तूं मदहोश पवन का इक झोंका,
मैं बुझता हुआ सा एक दीया,
तूं आकर अभी बुझा दे मुझे,
इक बार गले से मिल तो सही....
तूं सरिता की चंचल धारा ,
मैं उदास किनारा सूखा सा,
मैं टूट के बह जाऊं इस पल,
आ मुझे बहा ले जा तो सही.....
अनिल कुमार सिंह
मैं बुझता हुआ सा एक दीया,
तूं आकर अभी बुझा दे मुझे,
इक बार गले से मिल तो सही....
तूं सरिता की चंचल धारा ,
मैं उदास किनारा सूखा सा,
मैं टूट के बह जाऊं इस पल,
आ मुझे बहा ले जा तो सही.....
अनिल कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment