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Sunday, 31 July 2016

मुहब्बत के इशारे

हवाओं में महकते हैं, मुहब्बत के इशारे ,
छिपा कर चेहरा, खिड़की से झांकता है कोई,
राह तकती हैं बेचैनियाँ, आहटों की सांस से,
किसकी दस्तक है, इसी ख्याल में जागता है कोई...
खूबसूरती को घेर लेते हैं, अनचाहे से पहरे,
नज़र उठाते ही, डर से झुकाता है कोई,
तेज़ धड़कनों से ठिठक जाते हैं, कुछ पल को कदम,
जाने क्या सोच कर, फिर नहीं आता है कोई....
मुहब्बत! तूं इतनी खूबसूरत क्यों है......
अनिल

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