काँप कर कलियों ने
होठ अपने खोल लिए,
ये किसका बाँकपन,
चमन में जादू कर गया,
और फिर झूमकर बरसा,
गगन से पानी,
बांधे मौसम को दुपट्टे से,
चला करता है कोई..
होठ अपने खोल लिए,
ये किसका बाँकपन,
चमन में जादू कर गया,
और फिर झूमकर बरसा,
गगन से पानी,
बांधे मौसम को दुपट्टे से,
चला करता है कोई..
न संवरना आईने में,
नाज़ुक हैं चटख जाएंगे,
भला तुम्हें देखकर,
क्यों कोई अंगड़ाई न ले,
हैैरान था देखकर,
राह में कुचले फूलों को,
नर्म पैरों के लिए,
खुदकुशी किया करता है कोई....
अनिल
नाज़ुक हैं चटख जाएंगे,
भला तुम्हें देखकर,
क्यों कोई अंगड़ाई न ले,
हैैरान था देखकर,
राह में कुचले फूलों को,
नर्म पैरों के लिए,
खुदकुशी किया करता है कोई....
अनिल
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