Search This Blog

Sunday, 31 July 2016

शायद वो चले आएं

ओ थकती हुई राहों औ डगमगाते कदमों,
थोड़ी दूर साथ दे दो, शायद वो चले आएं।
यादों के घने जंगल, ख्वाबों के झुके महलों,
इक बार मुस्करा दो, शायद वो चले आएं ।
शरमाए तो नहीं तुमसे, सुनो चाँद औ॓॓र सितारों,
तुम आँख बंद कर लो, शायद वो चले आएं ।
अनिल

No comments:

Post a Comment