ये हवा, ये नमीं, ये खुशबुए़ं,
यादों के पर्दों पर दोहराते से चित्र,
रात की बाहों से खुले खुले केश,
डबडबाई आँखें में लहराता सागर,
गर्म आहों को समेटे सिसकता हुआ धुआं,
ओह! आज फिर तुम मेरे ख्वाबों में आई,
आज फिर मेरी छलकी हैं आँखें...
न, न छीनों मुझसे मेरी ही साँसें,
अब मुझे मुझसे मुहब्बत है........
यादों के पर्दों पर दोहराते से चित्र,
रात की बाहों से खुले खुले केश,
डबडबाई आँखें में लहराता सागर,
गर्म आहों को समेटे सिसकता हुआ धुआं,
ओह! आज फिर तुम मेरे ख्वाबों में आई,
आज फिर मेरी छलकी हैं आँखें...
न, न छीनों मुझसे मेरी ही साँसें,
अब मुझे मुझसे मुहब्बत है........
अनिल
No comments:
Post a Comment